मुस्लिम पुरुषों की चार शादियों पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की..

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पुरुषों के एक से अधिक शादी करने को लेकर अहम टिप्पणी की है कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पुरुषों को दूसरी शादी तभी करनी चाहिए जब वह सभी पत्नियों के साथ समान व्यवहार कर सके हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए आगे कहा कि कुरान में खास वजहों से बहु विवाह की इजाजत दी गई है.

लेकिन पुरुष इसका अपने स्वार्थ के लिए दुरुपयोग करते हैं मुरादाबाद से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पुरुष को दूसरी शादी करने का तब तक कोई अधिकार नहीं है जब तक कि वह सभी पत्नियों के साथ समान व्यवहार निभाने की क्षमता ना रखता हो इस्लाम में कुरान ने खास वजहों से बहु विवाह की इजाजत दी है इस्लामी काल में विधवाओं और अनाथों की सुरक्षा के लिए कुरान के तहत बहुविवाह की सौशर्त इजाजत दी गई है लेकिन पुरुष अपने स्वार्थ के लिए इसका दुरुपयोग करते हैं.

मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि शुरुआती इस्लामी समय में संघर्ष के चलते भारी संख्या में महिलाएं विधवा होती थी इन विधवाओं को सामाजिक शोषण से बचाने के लिए कुरान ने एक से अधिक शादी की अनुमति दी थी लेकिन इस छूट का स्वार्थ व सेक्स की चाहत के लिए नाजायज इस्तेमाल किया जा रहा है याची का कहना था कि दोनों मुस्लिम है इस्लाम चार शादी की इजाजत देता है इसीलिए धारा 494 भारतीय दंड संहिता का द्विवाह का अपराध नहीं बनता इसीलिए आपराधिक केस रद्द किया जाए कोर्ट ने मामला विचारनीय माना क्या इस्लाम चार स्वार्थ व संबंध पूर्ति के लिए दूसरी शादी की अनुमति देता है.

चलिए अब आपको बताते हैं कि आखिर यह पूरा मामला क्या है दरअसल कोर्ट ने याची फुरकान और दो अन्य की ओर से दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट की वकालत करते हुए टिप्पणी की है याची फुरकान खुशनुमा और अख्तर अली ने मुरादाबाद सीजीएम कोर्ट में 8 नवंबर 2020 को दाखिल चार्जशीट का संज्ञान और समन आदेश को रद्द करने की मांग में याचिका दाखिल की थी.

तीनों याचियों के खिलाफ मुरादाबाद के मैनाठेर थाने में 2020 में आईपीसी की धारा 376 495 120 बी 504 और 506 के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई थी एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि याची फुरकान ने बिना बताए दूसरी शादी कर ली है जबकि वह पहले से ही शादीशुदा है.

उसने इस शादी के दौरान बलात्कार किया याची फुरकान के वकील ने कोर्ट में दलील दी कि एफआईआर करने वाली महिला ने खुद ही स्वीकार किया कि उसने उसके साथ संबंध बनाने के बाद उससे शादी की है कोर्ट में कहा गया कि आईपीसी की धारा 494 के तहत उसके खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता क्योंकि मुस्लिम कानून और शरीयत नियम 1937 के तहत एक मुस्लिम व्यक्ति को चार बार तक की शादी करने की इजाजत है.

हाईकोर्ट ने अपने 18 पन्ने के फैसले में कहा कि विपक्षी संख्या दो के कथन से स्पष्ट है कि याची फुरकान ने उससे दूसरी शादी की है दोनों ही मुस्लिम महिलाएं हैं इसीलिए दूसरी शादी वैध है कोर्ट ने कहा कि याचियों के खिलाफ वर्तमान मामले में आईपीसी की धारा 376 के साथ 495 व बी का अपराध नहीं बनता कोर्ट ने इस मामले में विपक्षी संख्या दो को नोटिस जारी किया है कोर्ट ने अगले आदेश तक याचियों के खिलाफ किसी भी तरह के उत्पीड़ात्मक कार्यवाही पर रोक लगा दी है.

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