कौन थीं हज़रत ज़ैनब, जिसके सामने झुक गया यजीद?..

जब भी मुहर्रम का महीना आता है, जिक्र होता है बलिदान का, हौसले का और उस जांबाज महिला का जिसे इतिहास कर्बला की रानी कहकर सलाम करता है। मैं बात कर रहा हूं हजरत जैनब की। हजरत जैनब पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नातीन थी,

उनके वालिद का नाम हजरत अली और वालिदा का नाम फातिमा ज़हरा था। हजरत ज़ैनब इस्लाम के सबसे पाक और इमामत के सबसे ऊंचे घराने से ताल्लुक रखती थी। 680 ईवी में हजरत इमाम हुसैन ने यजीद की बेइंसाफी और जुल्म के खिलाफ आवाज उठाई। हालांकि कर्बला के तपते रेगिस्तान में इमाम हुसैन और उनके 72,

साथियों को शहीद कर दिया गया। लेकिन यह जंग नहीं रुकी। इस जंग को जिंदा रखा हजरत जैनब ने। वो अपने भाइयों, बेटों और भतीजों की शहादत देखती रही। मगर ना रुकी ना टूटी। कर्बला की जंग के बाद उन्हें कैद कर लिया गया और दमिश्क सीरिया के दरबार में पेश किया गया,

उस वक्त हजरत ज़ैनब जालिम यजीद के दरबार में खड़ी थी। लेकिन वहां भी वह हिम्मत के साथ यजीद को ललकार रही थी। उन्होंने वहां जो अल्फाज़ कहे वो आज भी बच्चे-बच्चे के जुबान पर सुनने को मिलते हैं। हजरत ज़ैनब ने कहा कि ए यजीद तू समझता है तूने हमें मिटा दिया। नहीं हमने अपने,

खून से इस्लाम को जिंदा किया है। हजरत ज़ैनब की इस ललकार ने यज़ीद की पूरी तख्त को हिला कर रख दिया। हजरत ज़ैनब ने ही महिलाओं को ताकत दी और उनकी आवाज बनी। उन्होंने तमाम मुस्लिम महिलाओं से कहा कि वो सिर्फ पर्दे की मोहताज नहीं बल्कि मजलूम की रहनुमा भी हो सकती हैं,

हजरत जैनब ही वह ताकतवर महिला थी जिसकी वजह से आज कर्बला की हकीकत हम तक पहुंची। मुहर्रम सिर्फ गम का महीना नहीं है। यह सब्र, बलिदान और सच्चाई के लिए डटे रहने की मिसाल है। हजरत जैनब हमें यह सिखाती हैं कि जंग सिर्फ तलवार से नहीं जबान और हिम्मत से भी लड़ी,

जाती है। पैगंबर मोहम्मद के दुनिया से जाने के बाद खिलाफत का सिलसिला शुरू हुआ। कर्बला की जंग होने के पीछे की वजह आसान शब्दों में समझे तो यह सत्ता की भूख शासन हासिल करने की लालच ही थी। कर्बला की जंग 10 मुहर्रम 61 हिजरी 680 ईसवी में इराक के कर्बला नामक स्थान पर हुई थी,

यज़ीद चालाकी और गलत तरीके से खलीफा बन गया था। उसने ताकत के बल पर सत्ता हथियाई थी। लेकिन वह चाहता था कि पैगंबर मोहम्मद के नाती यानी इमाम हुसैन उसके हाथ पर बेयत कर ले। यानी उसको खलीफा मान ले। लेकिन इमाम हुसैन ने यजीद को इस्लाम का खलीफा मानने,

से इंकार कर दिया था। इतिहास से पता लगता है कि यजीद इस्लाम में जिस तरह का खलीफा होना चाहिए उससे अलग था। वो शराब पीता था। वो अन्याय करता था। लोगों पर अत्याचार करता था। लेकिन वह जानता था कि अगर इमाम हुसैन उसको खलीफा मान लेंगे तो उसकी ताकत में इससे इजाफा होगा। इस्लाम के मानने वालों के बीच उसकी पहुंच बढ़ जाएगी। लेकिन इमाम हुसैन एक ऐसे शख्स को खलीफा मानने से सख्त खिलाफ थे जो इस्लाम के सीधे रास्ते पर नहीं था.

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