आज आपको स्पेस की यात्रा पर ले चलते हैं। पर उसके पहले गणित पढ़नी पड़ेगी थोड़ी सी। 28 दिन, छह असफलताएं और 31 देश। ये कुछ बेहद जरूरी आंकड़े हैं। एक ह्यूमन स्पेस मिशन से जुड़े हुए मिशन है। एक्सियम फोर। आज के शो में इसी मिशन पर विस्तार से बात करेंगे। भारत के एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला भी इसमें शामिल हैं। अपने साथ कुछ खास चीजें लेकर के जा रहे हैं। शुभांशु की यात्रा के बारे में बताएंगे। बात होगी इस मिशन के महत्व की भी। आखिर इतनी चर्चा क्यों हो रही है इसकी? वो 60 एक्सपेरिमेंट 60 प्रयोग कौन से हैं जिन्हें 14 दिन तक,
अंजाम दिया जाएगा? और अगर यह एक्सपेरिमेंट्स कामयाब हुए तो फिर आगे क्या होगा? क्या दूसरे ग्रहों पर इंसानी बस्तियां बसाने का रास्ता खुलेगा? क्या चांद पर जाना आम बात हो जाएगी? और भारत के लिए यह मिशन इतना महत्वपूर्ण क्यों माना जा रहा है? पानी वाले भालू और एक खिलौने को लेकर के क्यों जा रहे हैं शुभांशु? और क्यों शुभांशु का एक्सपीरियंस इसरो के गगनयान के लिए जरूरी समझा जा रहा है। विस्तार से सारे ब्यरे देंगे। शो में बात आपातकाल की भी होगी। 25 जून 1975 को लगाई गई इमरजेंसी के 50 साल पूरे हो चुके हैं। इस मौके पर नरेंद्र मोदी कैबिनेट ने एक,
बड़ा कदम उठाया। कांग्रेस ने जवाब भी दिया है। इमरजेंसी की वह पांच कहानियां भी आपको सुनाएंगे जिनके बारे में ज्यादा बात नहीं होती। पढ़ने के लिए कुछ किताबें भी आपको सजेस्ट करेंगे। उदयपुर में एक विदेशी महिला से रेप के बाद कौन सी परेशान करने वाली जानकारियां सामने आई हैं उस पर भी बात करेंगे। नमस्ते अपन है कुलदीप और आप देख रहे हैं द लंडन टॉप शो ड्रॉप टू यू बाय मिसेस बेक्टर्स हायर एंड इंडिया इंश्योरेंस मिसेस बेक्टर्स क्रमिका कोकोनट कुकीज़ आज चाय के साथ क्रमिका कोकोनट हो जाए 25 जून 2025 की तारीख अब इतिहास में दर्ज,
है। एक्सियम 4 मिशन भारतीय समय के अनुसार दोपहर करीब 12:00 बजे इंटरनेशनल स्पेस सेंटर के लिए रवाना हो गया। यह लॉन्च हुआ अमेरिका के फ्लोरिडा के कनेडी स्पेस सेंटर से। महीने में आधा दर्जन बार टलने के बाद अंततः अपने साथ चार अंतरिक्ष यात्रियों को यह लेकर के चला गया। इसलिए खुशी है, तसल्ली है, गर्व है, राहत है। कौन है यह चार अंतरिक्ष यात्री? अमेरिका की पेगी विटसन मिशन की कमांडर हैं। यह उनका दूसरा कमर्शियल ह्यूमन स्पेस फ्लाइट मिशन है। भारत के शुभांशु शुक्ला इस मिशन के डेजिग्नेटेड पायलट हैं और 1984 में राकेश,
शर्मा के बाद स्पेस में जाने वाले दूसरे भारतीय हैं। आईएसएस इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन जाने वाले पहले भारतीय हैं। पोलैंड के स्लावोस उजनास्की विजिस्की यह मिशन स्पेशलिस्ट हैं। 1978 के बाद स्पेस में जाने वाले पोलैंड के दूसरे एस्ट्रोनॉट हैं और हंगरी के टिबोर कापू ये भी मिशन स्पेशलिस्ट हैं। 1980 के बाद स्पेस में जाने वाले हंगरी के दूसरे गगन यात्री हैं। 31 देशों के सहयोग वाले इस मिशन से हासिल क्या किया जाना है? भारत के इसरो के लिए इस मिशन का महत्व क्या है? इन सवालों के जवाब आगे देंगे। पहले जानते हैं शुभांशु,
शुक्ला और उनकी यात्रा के बारे में। पहले सुनिए उनका यह संदेश। नमस्ते। आई एम ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला। द फर्स्ट इंडियन एस्ट्रोनॉट, विंग कमांडर राकेश शर्मा, ट्रेवल्ड टू स्पेस इन 1984. आई ग्रू अ रीडिंग अबाउट हिम इन टेक्स्ट बुक्स एंड लिसनिंग टू हिस स्टोरीज फ्रॉम स्पेस। आई वास डीपली डीपली इंप्रेस्ड बाय हिम। आई वांट टू यूज़ दिस अपॉर्चुनिटी टू इग्नाइट क्यूरियसिटी अमंग किड्स। इवन इफ दिस स्टोरी माय स्टोरी इज एबल टू चेंज वन लाइफ, इट वुड बी अ ह्यूज सक्सेस फॉर मी। शुभांशु मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ के रहने वाले हैं। 1986 में उनका जन्म,
हुआ। शहर के सिटी मॉनटेसरी स्कूल से उन्होंने पढ़ाई की। नेशनल डिफेंस एकेडमी यानी एनडीए से ग्रेजुएट हुए। जून 2006 में फाइटर पायलट के तौर पर भारतीय वायुसेना में वो शामिल हुए। उनके पास 2000 घंटों से ज्यादा का फ्लाइंग एक्सपीरियंस है। सुखोई, मेक जैगुआर, हॉक और डोर्नियर जैसे लड़ाकू विमान वो उड़ा चुके हैं। साल 2019 में इसरो ने उन्हें भारत के पहले इंसानी स्पेस मिशन गगनयान के लिए चुना और यहीं से शुरू हुई उनकी कड़ी ट्रेनिंग। पहले पहुंचे रूस के यूरीगा कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर। 2021 तक यहां उन्होंने ट्रेनिंग ली। भारत वापस,
आकर के इसरो के एस्ट्रोनॉट ट्रेनिंग फैसिलिटी सेंटर में भी ट्रेनिंग उन्होंने ली। नासा ने भी उनको ट्रेनिंग दी। इस बीच एक्सियम 4 मिशन को लेकर के नासा और इसरो का कोलैबोरेशन बढ़ा। 27 फरवरी 2024 को आधिकारिक घोषणा हुई। शुभांशु शुक्ला भी इस मिशन का हिस्सा होंगे। इस मिशन को लीड कर रही है अमेरिका की प्राइवेट स्पेस कंपनी एक्सियम प्रोजेक्ट में खरबपति व्यवसाय ईलॉन मस्क की कंपनी spcex भी शामिल है। स्पेस एक्स के ही बनाए गए ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट में अंतरिक्ष यात्री यात्रा कर रहे हैं। भारतीय समय के अनुसार 26 जून को शाम 4:30 बजे स्पेसक्राफ्ट की लैंडिंग,
आईएसएस पर होगी। सभी गगन यात्री 14 दिन तक यहां रहेंगे। करीब 60 माइक्रो ग्रेविटी साइंटिफिक एक्सपेरिमेंट्स को अंजाम देंगे। जिनमें से कुछ बेहद जरूरी एक्सपेरिमेंट्स के बारे में हम आपको बताते हैं। साइनोबक्टीरिया की ग्रोथ रेट, सेल्यूलर रिस्पांस और बायोकेमिकल एक्टिविटीज की स्टडी की जाएगी। यह बैक्टीरिया पेड़-पौधों की ही तरह फोटोसिंथेसिस के जरिए एनर्जी प्रोड्यूस करता है। इस स्टडी के जरिए डीप स्पेस एक्सप्लोरेशन में मदद मिल सकती है। अंतरिक्ष यात्री एडवांस मेडिकल डिवाइसेस का टेस्ट करेंगे। स्पेस में 3D प्रिंटिंग,
करेंगे। उन पदार्थों की स्टडी करेंगे जिनके लिए स्पेस की कंडीशंस एकदम अनुकूल नहीं मानी जाती। यह भी देखा जाएगा कि क्या डायबिटिक लोग स्पेस ट्रैवल कर सकते हैं? फिलहाल डायबिटिक लोग स्पेस में नहीं जा सकते क्योंकि इन कंडीशंस में ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल नहीं किया जा सकता। अब बात करते हैं कि भारत के लिए यह मिशन इतना जरूरी क्यों है? इस मिशन के लिए इसरो ने ₹548 करोड़ से ज्यादा का खर्च किया है और 10 के करीब एक्सपेरिमेंट्स डिजाइन किए हैं। मसलन यह देखा जाएगा कि माइक्रो ग्रेविटी में क्रॉप सीड्स कैसे बिहेव करते हैं। इससे डीप स्पेस एक्सप्लोरेशन में मदद,
मिल सकती है। क्योंकि अगर फसलें होगी तो इंसान लंबे समय तक किसी ग्रह पर रुक पाएंगे। यह भी देखा जाएगा कि स्पेस में इंसानी मसल्स का डिग्रेडेशन किस तरह से होता है। यह एक्सपेरिमेंट अंतरिक्ष यात्रियों की हेल्थ से जुड़ा हुआ है। इससे भी डीप स्पेस एक्सप्लोरेशन ज्यादा समय स्पेस में बिताने में मदद मिल सकती है। इसरो की तरफ से टारगी ग्रेडा भी भेजे गए हैं। इन्हें जल भालू भी कहते हैं। यह कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सर्वाइव करने के लिए जाने जाते हैं। स्पेस मिशनंस में अक्सर इन्हें ले जाया जाता है। इनके जरिए,
विषम परिस्थितियों में जीवित बचे रहने की स्टडी की जाएगी। ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला के साथ एक खिलौना भी जा रहा है। फ्लोटिंग स्वॉन जैसे ही स्पेसक्राफ्ट माइक्रो ग्रेविटी में पहुंचेगा वैसे ही यह खिलौना तैरने लगेगा। गगन यात्रियों को संकेत मिल जाएगा कि वह माइक्रो ग्रेविटी में आ चुके हैं। इसकी प्रतीकात्मक वैल्यू भी है। भारत में यह ज्ञान की देवी सरस्वती से जुड़ा है। पोलैंड में परिटी से और हंगरी में लॉयल्टी का प्रतीक है। माइक्रो ग्रेविटी एक्सपेरिमेंट्स का मतलब यह है कि जैसे हम अंतरिक्ष में जो भी एक्सपेरिमेंट्स करते हैं क्योंकि अंतरिक्ष,
खासकर तब जब इन्हें पहली बार अंजाम दिया जा रहा हो। शुभांशु इस मिशन के पायलट हैं। हालांकि ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट ऑटोमेटेड है लेकिन कई क्रिटिकल पोजीशंस पर स्पेसक्राफ्ट को गाइड करना पड़ेगा। ऐसे में शुभांशु को मिला एक्सपीरियंस गगनयान मिशन में काम आएगा क्योंकि रियल टाइम ट्रेनिंग किसी भी सिमुलेशन से बेहतर होती है। शुभांशु पहले भारतीय होंगे जो इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर पहुंचेंगे। भारत भी आईएसएस बनाने की तैयारी कर रहा है। ऐसे में शुभांशु के इनपुट बहुत काम आ सकते हैं। प्रोफेसर आगे लिखते हैं कि इसरो ने भारतीय परिप्रेक्ष में और भी,
एक्सपेरिमेंट्स प्लान किए हैं। मसलन शुभांशु स्पेस में स्प्राउट्स खाएंगे। व इससे भारत की स्पेस इंडस्ट्री को भी बूस्ट मिलेगा। एक्सपर्ट से और विस्तार से समझते हैं। माइक्रो ग्रेविटी में जो ये लोग एक्सपेरिमेंट करने वाले हैं वो बहुत ही महत्वपूर्ण है। और जैसे तीन जो मुख्य बिंदु है एक तो जो मनुष्य की जो फिजियोलॉजी है मनुष्य का शरीर क्रिया विज्ञान इसी तरह से एल्गी और इसी तरह से बीज कैसे अंतरिक्ष में उगाए जा सकते हैं और उगाए जा रहे हैं, उगाए गए हैं। उसके बारे में पूरा प्रयास यही है कि मानव अंतरिक्ष में ज्यादा समय तक कैसे रह सकता,
है? उसके लिए बहुत जरूरी है उसके लिए भोजन, पानी, हवा ये सारी चीजों की आवश्यकता होती है। सबसे महत्वपूर्ण है भोजन। तो भोजन को अगर हम वहां उगा सकते हैं, फसलें उगा सकते हैं, बीज उगा सकते हैं, एल्ग उगा सकते हैं। भोज्य एलगी जो है खाने योग्य उसको उगा सकते हैं। इसके प्रयोग किए जाने का वहां पर कार्यक्रम है। जो भी इस तरह के सूट है, जो भी उनके खानपान है, जो उनका रहन-सहन है, यह पूरे एक्सपेरिमेंट्स करके प्रयास यही है कि कितने ज्यादा से ज्यादा लंबे समय तक मानव को अंतरिक्ष में सस्टेन किया जा सकता है। अब एक और जरूरी सवाल। क्या ऐसा संभव है कि,
अगले तीन-चार दशक में स्पेस ट्रैवल लग्जरी ना रहे? हाल फिलहाल में हमने देखा कि कैसे मशहूर सिंगर कैटी पेरी अन्य महिलाओं के साथ स्पेस में गई। हालांकि इसकी अच्छी खासी कीमत लगी थी। दशकों पहले अंतरिक्ष में पर्यटन की कल्पना परिकथा जैसी लगती थी। फिर आया साल 2001 अमेरिका के बिजनेसमैन डेनिस टीटो ने लगभग $20 मिलियन यानी आज के हिसाब से $1 अरब 72 करोड़ खर्च करके अंतरिक्ष जाना चुना। पूरा खर्चा उन्होंने खुद उठाया। उन्हें अंतरिक्ष में ट्रैवल करने वाले पहले पर्यटक का तमगा मिला। लेकिन इस घटना के 24 साल बाद भी स्पेस में जाना अमीरों के लिए लग्जरी ही है.