मुंबई की ठंडी शाम थी। अक्टूबर की उस तारीख ने बॉलीवुड जगत को एक गहरा जख्म देने की तैयारी कर रखी थी। अभिनेता असरानी जिनकी हंसी ने करोड़ों चेहरे पर मुस्कान लाई थी। अब अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर थे। उनके घर में सन्नाटा पसरा था। बस कमरे में धीरे-धीरे चल रहे,
ऑक्सीजन मशीन की आवाज गूंज रही थी। बिस्तर पर लेटे असरानी साहब की आंखों में पुरानी यादें तैर रही थी। शोले की चेलर वाली भूमिका, चुपके-चुपके की कॉमेडी अभिमान का वो गंभीर किरदार सब एक चल चित्र की तरह सामने से गुजर रहा था। दीवार पर लटकी उनकी पुरानी फिल्मों की तस्वीरें जैसे उन्हें,
मुस्कुराने की कोशिश कर रही थी। उनकी पत्नी मंजू असरानी उनके पास बैठी थी। हाथों में असरानी का हाथ थामे। आंखों से आंसू बह रहे थे। लेकिन वह चाहती थी कि उनके चेहरे पर मुस्कान बनी रहे। क्योंकि असरानी हमेशा कहा करते थे जिंदगी में रोना आसान है पर लोगों को हंसाना बहुत मुश्किल मैं चाहता हूं,
जब मैं जाऊं तो सब मुस्कुराएं डॉक्टर और परिवार के सदस्य आसपास खड़े थे सलमान खान धर्मेंद्र जॉनी लीवर और कई पुराने साथी बार-बार फोन कर रहे थे कैसे हैं असरानी जी लेकिन अब जवाब वही था वो शांत थे रात के करीब 12:00 बजे असरानी साहब ने आखिरी बार आंखें खोली,
सामने मंजू जी थी उन्होंने धीरे से कहा मंजू लोग कहते हैं हंसी का इलाज है लेकिन आज लगता है कि यह इलाज मुझ पर काम नहीं कर रहा। मंजू जी की आंखें छलक उठी। उन्होंने धीरे से उनका माथा सहलाया। असरानी ने मुस्कुराने की कोशिश की और बोले लोगों का कहना है असरानी चला गया लेकिन उसकी हंसी छोड़ गया। इतना कहकर उन्होंने आसमान की ओर देखा। एक लंबी सांस ली और शांत हो गए।