सोचिए तेहरान जैसे बड़े शहर में अगर नलों से पानी आना बंद हो जाए तो क्या होगा? और सोचिए यह सिर्फ एकद दिन की बात नहीं। ऐसा पानी का संकट कि पूरे देश का लगभग 90% इलाका सूखे की चपेट में हो। जी हां, यही हाल है ईरान का जहां राष्ट्रपति खुद चेतावनी दे रहे हैं कि अगर हालात नहीं संभाले तो अगले महीने से नलों में पानी नहीं होगा। सवाल यह है कि आखिर ईरान पानी के ऐसे बुरे दौर में कैसे पहुंच गया? तो चलिए आपको बताते हैं,
इस जल संकट के पीछे की पूरी कहानी जिसमें है सूखा गलत प्लानिंग और पानी की बर्बादी का ऐसा कॉम्बिनेशन जो किसी भी देश के लिए खतरे की घंटी है। नमस्कार, मैं हूं सिद्धार्थ प्रकाश। ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन ने खुलेआम मीडिया के सामने कहा है कि हालात बेहद गंभीर हैं। तेहरान समेत देश के कई हिस्से पानी के भयंकर संकट का सामना कर रहे हैं। अब यह संकट अचानक से नहीं आया। इसके पीछे कई सालों से जमा होती समस्याएं हैं,
सबसे पहला कारण है लगातार सूखा। ईरान का करीब 90% इलाका पिछले कई सालों से ड्रॉट यानी सूखे की चपेट में है। सिर्फ इस साल की बात करें तो सितंबर 2024 से अब तक बारिश में 45% तक की गिरावट आई है। मतलब आसमान से पानी गिर ही नहीं रहा और जो गिरा भी वो सामान्य से आधा कम। नतीजा देश के डैम खाली होने लगे। अभी हाल यह है कि ईरान के डैम्स में सिर्फ 42% पानी बचा है। तेरान के डैम्स का पानी भी सिर्फ सितंबर के आखिर तक ही चल पाएगा,
उसके बाद सरकार भी नहीं जानती। दूसरा बड़ा कारण पानी की बर्बादी। ईरान में 70% से ज्यादा लोग पानी उतना इस्तेमाल करते हैं जितना स्टैंडर्ड लिमिट से ऊपर है। स्टैंडर्ड है 130 लीटर प्रतिदिन। लेकिन तेहरान में कई लोग इससे कहीं ज्यादा पानी बहा देते हैं। जब संकट सिर पर हो तब इस तरह की बर्बादी आग में घी डालने का काम करती है। तीसरा कारण रिसोर्स मैनेजमेंट की नाकामी। आपको जानकर हैरानी होगी कि ईरान में कुल पानी का 80 से 90% हिस्सा अकेले खेती में चला जाता है,
और ऐसा क्यों? क्योंकि ईरान में आज भी सिंचाई के पुराने और इनएफिशिएंट तरीके इस्तेमाल होते हैं जिसमें बेहिसाब पानी बर्बाद होता है। और तो और ईरान उन फसलों को भी बड़े पैमाने पर उगाता है जिनमें बहुत ज्यादा पानी लगता है। जैसे गन्ना और चावल। एक सूखा देश जब पानी चूसने वाली फसलें उगाएगा तो नतीजा यही होना था,
ऊपर से इंडस्ट्री और शहरी एरिया में भी पानी बचाने का कोई ठोस सिस्टम नहीं है। पेशियन ने कहा है कि सरकार 24/7 काम कर रही है। जैसे कि तालेबान डैम से पानी ट्रांसफर कर तेहरान को बचाने की कोशिश। लेकिन खुद राष्ट्रपति मानते हैं कि यह भी गारंटी नहीं कि पानी का संकट टल जाएगा। फिलहाल सरकार ऑफिस क्लोज़र वर्किंग आवर्स कम करने जैसे अस्थाई उपाय कर रही है। लेकिन राष्ट्रपति ने साफ कहा कि यह सब सिर्फ समस्या को ढकने जैसा है,
असली हल नहीं। मतलब सरकार को भी पता है कि जब तक लोग खुद पानी बचाने की आदत नहीं डालेंगे और कृषि में बड़े सुधार नहीं होंगे तब तक संकट और गहराएगा और यह कोई पहली बार नहीं है। 2021 में भी पानी की कमी को लेकर ईरान के दक्षिण पश्चिमी हिस्से में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं,
तो इस बार हालात और भी ज्यादा खराब हैं। तो सवाल अब यह है कि क्या ईरान इस बार अपने पानी के संकट को काबू कर पाएगा या फिर सितंबर आते-आते तेहरान जैसे बड़े शहर भी प्यासे रह जाएंगे। क्योंकि जिस देश का 90% इलाका सूखा झेल रहा हो वहां पानी सिर्फ एक जरूरत नहीं जिंदा रहने की आखिरी उम्मीद बन चुका है।